Share Market: अमेरिका से लेकर जापान और भारत के स्टॉक मार्केट कोहराम मचा?
Share Market: अमेरिकी शेयर बाजार जुलाई में अपने ऑल टाइम हाई लेवल पर कारोबार कर रहा था।
उसी के इर्द-गिर्द दुनियाभर के स्टॉक मार्केट में बहार थी। इसमें भारत का शेयर बाजार भी शामिल था।
लेकिन, फिर कुछ ऐसा होता है कि दुनियाभर के स्टॉक मार्केट में गिरावट का खौफ बढ़ जाता है।
और इसके केंद्र में होते हैं अमेरिकी अरबपति और दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे (Warren Buffett)।
बर्कशायर हैथवे (Berkshire Hathaway) के चेयरपर्सन बफे निवेश की दुनिया शाहकार समझे जाते हैं।
दुनिया में बहुत-ही कम लोग होंगे, जिन्होंने निवेश से बफे जितना पैसा बनाया होगा।
उनके पास करीब 277 अरब डॉलर कैश है। रुपये में बात करें, तो लगभग 25 ट्रिलियन।
बफे की एपल, अमेरिकन एक्सप्रेस और बैंक ऑफ अमेरिका में अच्छी-खासी होल्डिंग भी है।
वह अपने अकूत नकदी भंडार की बदौलत बड़ी से बड़ी कंपनी के शेयरों में उछाल या गिरावट ला सकते हैं।
क्या बफे हैं शेयर मार्केट क्रैश के जिम्मेदार
वॉरेन बफे की बर्कशायर हैथवे ने जुलाई में एपल समेत कई कंपनियों में बड़े पैमाने पर अपनी हिस्सेदारी बेची।
यह शायद पहली दफा था, जब बर्कशायर ने किसी एक तिमाही ने इतनी ज्यादा बिकवाली की हो।
वहीं, नए निवेश की बात करें, तो वॉरेन बफे ने जून तिमाही में तकरीबन न के बराबर किया।
उनका कहना है कि वह नया निवेश तभी करेंगे, जब उन्हें भारी लाभ की उम्मीद रहेगी।
बफे की बिकवाली ने दुनियाभर के शेयर बाजरों में कई अटकलों को जन्म दिया।
निवेशकों के मन सवाल उठने लगे कि बफे अपना कैश भंडार क्यों बढ़ा रहे हैं।
दुनियाभर के निवेशकों को लगा कि बफे कुछ तो ऐसा जानते हैं, जो उन्हें नहीं पता।यही वजह है कि अमेरिका के
साथ ही चीन, जापान और भारत जैसे सभी बड़े बाजारों में बिकवाली हुई और शेयर मार्केट क्रैश कर गया।
Share Market में गिरावट से बफे को क्या फायदा
वॉरेन बफे के दोनों हाथ में लड्डू हैं। उनके पास 277 अरब डॉलर का कैश तो है ही, साथ ही कई कंपनियों में होल्डिंग
भी है। इसका मतलब कि अगर मौजूदा गिरावट न भी आती, तो वह एपल और बैंक ऑफ अमेरिका जैसी कंपनियों में
अपनी होल्डिंग की बदौलत अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते थे। वहीं, गिरावट के सूरत में उनके पास मौका रहेगा
कि वे अकूत धन भंडार को वापस मार्केट में लगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सके।
अमेरिका शेयर मार्केट में गिरावट की वजह बेरोजगारी के आंकड़े और इससे जुड़ा Sahm Rule।
इस रूल के मुताबिक, तीन महीने की बेरोजगारी दर पिछले 12 महीने की न्यूनतम दर से 0.5 फीसदी ज्यादा है,
तो मंदी आती है। 1970 से यह फार्मूला सही साबित हुआ है। लेकिन, यह Rule बनाने वाली Claudia Sahm खुद
ही सिर्फ बेरोजगारी के आंकड़े के आधार पर मंदी की आशंका को खारिज कर चुकी हैं।