Taj Mahal के निर्माण से जुड़ी वो अनोखी कहानी, जिससे अबतक अनजान हैं लोग

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Taj Mahal के निर्माण से जुड़ी वो अनोखी कहानी, जिससे अबतक अनजान हैं लोग

Taj Mahal: मुगलवंश के पांचवें बादशाह शाहजहां ने अपनी बेहम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था. ताजमहल की गिनती दुनिया के अजूबों में होती है.

आज उस ताज के निर्माण की ऐसी कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत से लोग आज भी अनजान होंगे.

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शाहजहां को निर्माताओं का राजकुमार भी कहा जाता था. उसने दिल्ली से लेकर आगरा तक कई ऐसे नायाब अनमोल नगीनों का निर्माण कराया जो सदियों बाद भी चमक और दमक रहे हैं.

ताजमहल निर्माण का आइडिया

मुमताज, शाहजहां की चौथी पत्नी थीं जिनसे शाहजहां को 13 बच्चे थे. उनकी मौत मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद में हुई थी. 1631 में अपने 14वें बच्चे को जन्म देते हुए उनकी मौत हो गई थी.

जिसके बाद मुमताज को वहां जैनाबाद गार्डन में दफनाया गया था. अपनी चहेती बेगम की मौत से शाहजहां को सदमा लगा तो वो एकांत में अपनी फौज के सिपहसालारों के साथ बुरहानपुर में रहने लगे.

वहीं उन्हें मुमताज का मकबरा बनाने का ख्याल आया. मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ने कसम खाई थी कि वो ऐसी इमारत बनवाएंगे, जिसके बराबर की दुनिया में कोई दूसरी इमारत नहीं होगी,

इसके बाद ताजमहल का निर्माण कराया गया. ‘ताजमहल या ममी महल’ बुक के लेखक अफसर अहमद ने इन सब बातों को अपनी किताब में लिखा है.

ऐसी थी दोनों की लव स्टोरी

मुमताज और शाहजहां की मिसालें आज प्रेम की इमारत के रूप में दी जाती है. कहा जाता है कि मुमताज और शाहजहां दोनों की मुलाकात एक बाजार में हुई थी और उसके बाद दोनों की सगाई हुई थी.

सगाई होने के 5 साल बाद 10 मई 1612 को दोनों की शादी हुई थी. कहा जाता है कि मुमताज ने मरने से पहले भी शाहजहां को अपने पास मिलने बुलाया था लेकिन शाहजहां वहां नहीं पहुंच पाए थे.

इस बात से लोग अबतक अनजान

दिसंबर 1631 को मुमताज के शव को जैनाबाद की कब्र से निकालकर एक सोने से बने ताबूत में रखकर यूपी में यमुना नदी के तट पर बने एक छोटे से घर में रखा गया था.

उस दौर में जब आज का कथित ताजमहल बनकर तैयार हो गया तब उसमें मुमताज के शव को दफनाया गया. उस समय इस बुलंद इमारत का नाम मुमताज महल रखा गया. जो आगे चलकर ताजमहल के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाने लगा.

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इसे बनाने से पहले शाहजहां ने इरान के अमानत खान को हिंदुस्तान बुलवाया था. दिल्ली के चिरंजीलाल के अलावा मोहम्मद हनीफ, अब्दुल करीम और मकरामत खान और उस्ताद लाहोरी खान की इसे बनवाने में अहम भूमिका थी.

इस बनाने के लिए उत्तर भारत के 20000 मजदूर और चुनिंदा राजमिस्त्रियों को बुलवाया गया था. वहीं सामान ढोने के लिए 10000 हाथियों और बैलों को लगाया गया था.

 

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Ajay Sharmahttps://computersjagat.com
Indian Journalist. Resident of Kushinagar district (UP). Editor in Chief of Computer Jagat daily and fortnightly newspaper. Contact via mail computerjagat.news@gmail.com

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