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Kedarnath: केदारनाथ वास्तव में भगवान शंकर के अदृश्य रूप सदाशिव का मंदिर 

Kedarnath: केदारनाथ वास्तव में भगवान शंकर के अदृश्य रूप सदाशिव का मंदिर

Kedarnath:  जिस प्रकार भारत का प्रत्येक व्यक्ति दार्शनिक नजरिया रखता है

ठीक उसी प्रकार हिमालय का प्रत्येक प्रस्तर भी अपने आप में एक तीर्थ कहलाता है।

हिमालय का कोई भी स्थान ऐसा नहीं है, जो ईश्वर की महिमा न गाता हो। कहने का तात्पर्य यह है

Kedarnath भाव और विचार की सिद्धभूमि हैं

भारतीय तीर्थ ज्ञान और भक्ति की पृष्ठभूमि हैं, भाव और विचार की सिद्धभूमि हैं

तथा अनेक शास्त्रों एवं पुराणों की भावभूमि होने के साथ-साथ ये तीर्थ भक्तजनों के लिए धर्मभूमि भी हैं।

हिमालय के तीर्थस्थलों में बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ, बूढ़े अमरनाथ,

आदिबदरी, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, गोमुख, तुंगनाथ, त्रियुगी नारायण, ऊखीमठ, कालीमठ, मदमहेश्वर, रुद्रनाथ,

कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, कल्पेश्वर, ज्योतिर्मठ, पांडुकेश्वर आदि जहां अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं,

वहीं मध्य हिमालय में स्थित भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ भी अपने आप में एक सिद्ध पीठ है।

समुद्र तल से लगभग 11 हजार 750 फीट की ऊंचाई पर स्थित

Kedarnath भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में माने जाते हैं

असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा के प्रतीक केदारनाथ भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में माने जाते हैं।

श्री केदारनाथ, जो कि हिम शिखर की गोद में स्थित होने के साथ-साथ मंदाकिनी के सुरम्य तट को भी सुशोभित कर रहे हैं

और सघन वृक्ष जहां उसकी हरीतिमा को द्विगुणित करते हैं, वहीं यह तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के लिए

आकर्षण का एक विशेष केंद्रबिंदु हैं। कुल मिलाकर यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है।

मान्यता है कि सतयुग में उपमन्यु ने यहां भगवान शिव की आराधना की और द्वापर युग में पांडवों ने तपस्या की।

धर्मशास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर, केदारनाथ, कल्पेश्वर और नेपाल स्थित पशुपतिनाथ,

जिनको पंचकेदार के नाम से भी पुकारा जाता है। इन तमाम स्थानों पर

भगवान शंकर का कोई न कोई अंग अपने अद्वितीय रूप में अवश्य विराजमान है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर का तुंगनाथ में बाहु, रुद्रनाथ में मुख, मदमहेश्वर में नाभि, कल्पेश्वर में जटा,

केदारनाथ में पृष्ठभाग (धड़) और पशुपतिनाथ (नेपाल) में सिर स्थित है।

केदारनाथ, जो कि भगवान शिव की दिव्य भूमि है, यहां कोई मूर्ति न होकर

अपितु स्वयं निर्मित एक त्रिकोण प्रस्तर प्रतिमा है। इसी स्थान पर शिवभक्त पूजा-अर्चना करते हैं।

Kedarnath अलौकिक छवि में पवित्रता के लिए चिरविख्यात

केदारनाथ मंदिर के निकट ही कुछ मनोरम तथा दिव्य स्थल हैं, जिनमें भृगुपंथ, क्षीरगंगा,

वासुकिताल एवं भैरव शिला आदि प्रमुख हैं। यह स्थल अपनी अलौकिक छवि में पवित्रता के लिए चिरविख्यात हैं।

मंदिर मंडप में ही उषा, अनिरुद्ध, पंचपांडव, श्रीकृष्ण तथा शिव-पार्वती की भव्य मूर्तियाँ हैं। मंदिर के समीप कई कुंड हैं।

बारह परिक्रमा के निकट अमृत कुंड, ईशान कुंड, हंस कुंड, रेतम कुंड आदि दर्शनीय स्थान हैं।

इसमें दो राय नहीं कि धर्म एवं सौंदर्य दोनों ही दृष्टियों से यह तीर्थ वंदनीय है।

श्री केदारनाथ मंदिर के विषय में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडवों ने कराया

तथा बाद में इसका जीर्णोद्धार आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने कराया था।

इसीलिए हिम से ढंके इस स्थान पर केदारनाथ मंदिर के समीप ही आदि शंकराचार्य का समाधिस्थल बनाया गया है।

केदारनाथ (Kedarnath) मंदिर में भगवान शिव के प्रतीक रूप में विराजमान त्रिकोण प्रस्तर

प्रतिमा के संदर्भ में शिव पुराण के अनुसार कथा है कि जब महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव

अपने कुल परिवार और गोत्र के बंधु-बांधवों के वध के पाप का प्रायश्चित करने के लिए भगवान वेद व्यास के कहने से

हिमालय पर तप करने आये तो गोत्र हत्या के दोषी होने के कारण भगवान शिव ने उन्हें दर्शन नहीं देना चाहा।

पांडवों ने भी भगवान शिव के प्रति अपनी दर्शन की इच्छा को नहीं छोड़ा।

शिव केदार भूमि पर भैंसे के रूप में अन्य भैंसों के बीच मिलकर हरी दूब चरने लगे,

लेकिन सहदेव ने शिव को पहचान लिया। भीम ने अपनी दोनों जंघाओं से भैंसों के आने का रास्ता रोक दिया

शिव विवश होकर वहीं भूमि में धँसने लगे

और केवल टाँगों के नीचे से ही जाने का रास्ता छोड़ा। शिव विवश होकर वहीं भूमि में धँसने लगे।

भीम ने उन्हें पृथ्वी में अद्र्ध समाया हुआ देखकर बीच में ही पकड़ लिया।

इस तरह पांडवों को सिर्फ उनकी पीठ के ही दर्शन हो सके। वही पीठ आज शिला के रूप में मंदिर में स्थापित है

और अगला धड़, जो पृथ्वी में समा गया था, वह नेपाल में उदय हुआ, जो पशुपति के नाम से प्रसिद्ध है।

केदारनाथ (Kedarnath) वास्तव में भगवान शंकर के अदृश्य रूप सदाशिव का मंदिर है।

शिव के अन्य अंग जहाँ-जहाँ प्रकट हुए, वे केदार कहलाये, लेकिन यह समस्त

केदार तीर्थों में श्रेष्ठ और प्रथम केदार के नाम से विख्यात है। केदार मंडल में अनेक तीर्थ

सैकड़ों शिवलिंग व सुंदर तथा मीठे पानी की पवित्र धाराएं हैं। मंदिर के केंद्र में श्री केदारनाथ (Kedarnath) की स्वयंभू

त्रिकोण प्रस्तर प्रतिमा है। उसी में भैंसे के पिछले धड़ की आकृति मालूम होती है।

केदारनाथ का यह मंदिर शिल्प का अनूठा उदाहरण है। मंदिर भूरे रंग के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है।

मंदिर के ठीक सामने नंदी की मूर्ति मंदिर के सौंदर्य को द्विगुणित कर देती है।

द्वार के दोनों ओर द्वारपाल हैं

मंदिर के सामने जगमोहन नामक स्थान पर द्रौपदी सहित पाँचों पांडवों की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं।

द्वार के दोनों ओर द्वारपाल हैं। श्री केदारनाथ भगवान शंकर की

श्रृंगार मूर्ति की सुंदरता को द्विगुणित कर रही है।मंदिर के भवन में राम-लक्ष्मण, सीता,

नंदीश्वर तथा गरूड़ की भव्य तथा सुंदर प्रतिमाएँ भक्तों को भक्ति का संदेश देती प्रतीत होती हैं।

संगम का स्थान संगम महादेव कहलाता है

मंदाकिनी, सरस्वती, क्षीरगंगा, स्वर्णद्वारी और महोदधि पाँच नदियों का संगम केदारनाथ मंदिर को

अलौकिक छटा प्रदान करता है। इसीलिए संगम का स्थान संगम महादेव कहलाता है।

मंदिर की परिक्रमा में स्थित अमृत कुंड, ईशान कुंड, हंस कुंड और उदय कुंड हैं।

यहाँ इंद्र ने तप किया था

इनमें आचमन तथा तर्पण का बड़ा महत्व है। केदारनाथ के बायें भाग में इंद्र पर्वत है।

यहाँ इंद्र ने तप किया था। यहाँ भी शिवलिंग है। मंदिर से आधा किलोमीटर की दूरी पर भैरव शिला मंदिर हैं,

जहाँ केदारनाथ (Kedarnath) मंदिर के कपाट खुलने व बंद होने के दिन ही पूजा होती है।

भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल में बंद कर दिये जाते हैं तथा वैशाख मास के आने पर

श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ छह माह तक खुले रहते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है

कि सतयुग में एक राजा ने यहाँ तपस्या की थी, इसलिए यह क्षेत्र श्री केदारनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वास्तव में यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने के साथ-साथ सतयुगीन साधकों की साधना भूमि,

भगवान शिव की आराधना भूमि, पांडवों की तपोभूमि तथा कवियों की कविताओं की

भावभूमि के रूप में सदियों से हमारे अंत:करण में ईश्वर की उपस्थिति का आभास दिलाती प्रतीत होती है।

 

 

 

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Ajay Sharma

Indian Journalist. Resident of Kushinagar district (UP). Editor in Chief of Computer Jagat daily and fortnightly newspaper. Contact via mail computerjagat.news@gmail.com

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